गाज़ीपुर: मनरेगा शिकायत के बाद आरटीआई कार्यकर्ता पर फर्जी एफआईआर का आरोप

बलुआतप्पेशाहपुर गाँव के आरटीआई कार्यकर्ता अम्बुज कुमार राय ने पुलिस विवेचना अधिकारी को ई-मेल से भेजे सशपथ बयान में मनरेगा भ्रष्टाचार, वकील-प्रधान गठजोड़ और प्रशासनिक लीपापोती पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पूरा मामला पढ़ें...

Dec 8, 2025 - 20:48
Dec 8, 2025 - 20:48
 0
गाज़ीपुर: मनरेगा शिकायत के बाद आरटीआई कार्यकर्ता पर फर्जी एफआईआर का आरोप
आरटीआई कार्यकर्ता पर फर्जी एफआईआर का आरोप

गाज़ीपुर में मनरेगा शिकायत के बाद आरटीआई कार्यकर्ता पर ‘फर्जी एफआईआर’ का विवाद अम्बुज कुमार राय का विस्तृत सशपथ बयान पुलिस विवेचना पर सवाल खड़े करता है

उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर ज़िले की मुहम्मदाबाद तहसील के ग्राम सभा बलुआतप्पेशाहपुर में मनरेगा योजनाओं में कथित भ्रष्टाचार को लेकर शुरू हुआ विवाद अब पुलिस विवेचना और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर बहस में बदल गया है।

ग्राम निवासी, करदाता, मतदाता और स्वयं को आरटीआई कार्यकर्ता बताने वाले अम्बुज कुमार राय ने 06 दिसंबर 2025 को ई-मेल के माध्यम से थाना मुहम्मदाबाद के विवेचना अधिकारी राजेश कुमार त्रिपाठी को अपना विस्तृत सशपथ-पूर्वक बयान भेजा है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि मनरेगा घोटाले की शिकायतों को दबाने, और उच्च स्तर पर चल रही जाँच को कमजोर करने के लिए उनके खिलाफ सुनियोजित, मनगढ़ंत और 101 प्रतिशत झूठी एफआईआर” दर्ज कराई गई।

राय का कहना है कि वे भारतीय संविधान और विधि के दायरे में रहकर काम करने वाले नागरिक हैं, और मनरेगा लूट के विरुद्ध उठाई गई आवाज़ को ख़ामोश करने के लिए काला कोट–प्रधान गठजोड़ व कुछ प्रशासनिक तत्वों ने यह मुकदमा गढ़ा है।” उन्होंने अपने बयान को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 4 और 44(क) के तहत विधिसम्मत इलेक्ट्रॉनिक अभिकथन बताते हुए माँग की है कि इसे CD लोक-अभिलेख में अक्षरशः दर्ज किया जाए।

पृष्ठभूमि: मनरेगा, आरटीआई और बलुआतप्पेशाहपुर

अम्बुज कुमार राय के अनुसार, वर्ष 2022 से वे ग्राम सभा बलुआतप्पेशाहपुर में मनरेगा योजनाओं के क्रियान्वयन में भारी अनियमितताओं की शिकायत करते रहे हैं। उनका आरोप है कि-

  • मनरेगा के नाम पर 40 वर्ष से बंद, अनुपयोगी नहर की कागज़ी सफाई व ‘पेपरवर्क कार्य’ दिखाकर
  • ग्राम प्रधान प्रतिनिधि बब्बन राय और उनके परिवार सहित कुछ अपात्र व्यक्तियों को लाभ पहुंचाया गया,
  • और यह सब अधिवक्ता धनंजय कुमार राय के प्रभाव में, नियमों को दरकिनार कर किया गया।

राय का कहना है कि उनकी शिकायतों पर उत्तर प्रदेश शासन, डीजीपी कार्यालय, एसीओ (भ्रष्टाचार निवारण संगठन), लखनऊ, जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी गाज़ीपुर के स्तर पर संज्ञान लिया गया। इसी क्रम में दिनांक 07 नवंबर 2025 को मनरेगा विभाग से संबंधित टीम गांव में जाँच के लिए आई

उनका आरोप है कि शिकायत में धनंजय कुमार राय का नाम भी दर्ज है, और जाँच के दौरान प्रशासन पर ‘मनरेगा लूट’ के संदर्भ में लीपापोती करने का दबाव रहा। आरोप यह भी है कि डिप्टी कमिश्नर (मनरेगा) स्तर पर यह संकेत दिया गया कि यदि शिकायत की पैरवी जारी रही तो ‘बचना बचाना मुश्किल है’, जो शिकायतकर्ता के अनुसार, उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश थी।

एफआईआर और फोन कॉल: “दबाव में गढ़ा गया मामला”

अम्बुज कुमार राय के अनुसार, मोबाइल नंबर 8858127893 से थाना मुहम्मदाबाद पर दर्ज F.I.R. No. 0360/2025 के संदर्भ में उनके बयान के लिए उन्हें थाने पर बुलाया गया

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि-

  • यह एफआईआर काला कोट संघ के प्रभाव” में दर्ज हुई,
  • इसके पीछे उद्देश्य यह है कि वे मनरेगा भ्रष्टाचार के खिलाफ की जा रही अपनी लगातार आरटीआई व शिकायत पैरवी से पीछे हट जाएँ,
  • और गांव में सक्रिय तथाकथित ‘लूट गिरोह’ को राहत मिल सके।

इसी संदर्भ में उन्होंने अपना लंबा सशपथ पूर्वक बयान ई-मेल के माध्यम से विवेचना अधिकारी एवं थाना प्रभारी को भेजा, और स्पष्ट लिखा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रस्तुत यह बयान विधिसम्मत है, जिसे अभिलेखित करना पुलिस की जिम्मेदारी है।

मैं गुंडई या दबंगई करने वाला व्यक्ति नहीं”: अम्बुज कुमार राय का आत्मपक्ष

अपने बयान में अम्बुज राय ने सबसे पहले अपना चरित्र और नागरिकता की पहचान स्पष्ट करते हुए लिखा कि-

1.     वे भारत के करदाता, मतदाता, आरटीआई कार्यकर्ता और संविधान के भीतर रहकर काम करने वाले नागरिक हैं।

2.     उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को “101 प्रतिशत झूठ” करार देते हुए कहा कि वे कभी भी किसी के साथ घटिया, छिछोरी, दबंग या गुंडई जैसा व्यवहार नहीं करते और न ही कानून-विरुद्ध गतिविधियों में संलिप्त हैं।

3.     वे स्वयं को सही और सत्य पथ पर चलने वाला” बताते हैं, जिसके कारण भ्रष्टाचार में संलिप्त तत्वों को उनके खिलाफ षड़यंत्र रचने की जरूरत महसूस हुई।

घटना स्थल, सीसीटीवी और डिजिटल साक्ष्य की माँग

एफआईआर में कथित घटना न्यायालय मुख्य द्वार के बाहर, व्यस्त फुटपाथ और दुकानों के बीच घटित बताई गई है। अम्बुज राय के अनुसार-

  • यह स्थान आवागमन से भरा एक व्यस्ततम सार्वजनिक क्षेत्र है,
  • यहाँ दुकानों के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे होने की पूरी संभावना है,
  • और आधुनिक समय में, जहां हर हाथ में मोबाइल है और लोग फेसबुक–व्हाट्सऐप पर वीडियो बनाने के शौकीन हैं, किसी भी वास्तविक गाली-गलौज या धमकी की घटना का वीडियो या दृश्य साक्ष्य उपलब्ध होना स्वाभाविक था।

उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णयों और यूपी पुलिस के दिशा-निर्देशों के आलोक में ऐसी किसी भी गंभीर आपराधिक शिकायत में-

  • सीसीटीवी फुटेज, स्वतंत्र गवाह, डिजिटल रिकॉर्डिंग जैसे साक्ष्य इकट्ठा करना और आरोपपत्र के साथ संलग्न करना अनिवार्य होना चाहिए।
  • यदि विवेचना इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं दिखाती, तो यह एकतरफा और प्रभावित जाँच की आशंका को बल देता है।

2010 से चली आ रही अदावत और मुकदमों का संदर्भ

अम्बुज कुमार राय का आरोप है कि शिकायतकर्ता धनंजय कुमार राय वर्ष 2010 से उनके पिता के मुकदमे में विपक्ष पक्ष की पैरवी कर रहे हैं

वे लिखते हैं कि-

  • 12 वर्षों से अधिक समय से न्यायालय में चलते मुकदमों के दौरान न तो उन्होंने गांव में, न अदालत में किसी को गाली दी, न धमकी,
  • उनके पिता की अस्वस्थता के कारण वे ही परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं,
  • लेकिन पिछले सात महीनों से उन्हें बार-बार तारीख पर अदालत जाना पड़ता है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ा है।

उनका आरोप है कि-

लूट गिरोह चाहता है कि मैं हार कर मनरेगा पैरवी छोड़ दूँ, तारीखों के बोझ और झूठे मुकदमों से थक कर चुप बैठ जाऊं।”

हत्या की धमकी हमें ही मिलती रही है’

सशपथ बयान में राय ने यह भी कहा कि-

  • हत्या की धमकी देना तो उल्टे शिकायतकर्ता पक्ष की ओर से होता रहा है,
  • गांव में उनके भाई अनुज को कई बार खुलेआम गालियाँ दी गईं,
  • स्वयं अम्बुज को भी गांव में घेरकर गाली, गोली मारने की धमकी और गला दबाकर मारने की कोशिश जैसे गंभीर प्रयास किए गए।

उन्होंने दावा किया कि-

  • उनके पास ऐसे लोगों के शपथपत्र देने वाले गवाह मौजूद हैं, जो शिकायतकर्ता पक्ष की धमकियों की तस्दीक कर सकते हैं,
  • परंतु थाने पर गवाही दर्ज कराने के लिए धनबल की जरूरत पड़ती है, जो उनकी आर्थिक स्थिति नहीं झेल सकती,
  • इसलिए वे न्यायालय को ही गरीब की अंतिम शरण बताते हैं।

दो सवाल जो निर्णायक बताए गए

अपने बयान में अम्बुज राय ने विवेचना अधिकारी से आग्रह किया है कि यदि सचमुच ईमानदार और निष्पक्ष विवेचना करनी है, तो शिकायतकर्ता से दो अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्नों के लिखित उत्तर लिए जाएँ-

प्रश्न 01

धनंजय कुमार राय वकालत पेशा करते हुए बब्बन राय प्रधान प्रतिनिधि के साथ मिलकर बिना मनरेगा जॉब कार्ड, बिना कार्य माँग आवेदन पत्र, बिना अनुमतिपत्र, बिना मास्टर रोल हस्ताक्षर के, केवल अनुकम्पा से मनरेगा का सरकारी धन प्राप्त किया गया, हाँ या ना?”

प्रश्न 02

अम्बुज कुमार राय की निरंतर मनरेगा शिकायतों के संदर्भ में आपने वर्ष 2020 में ली गई मनरेगा धनराशि किस अधिकारी के लिखित आदेश पर वापस की?”

राय का कहना है कि यदि ये दोनों प्रश्न ईमानदारी से, लिखित रूप में और रिकॉर्ड पर उत्तर दिए जाते हैं, तो मनरेगा भ्रष्टाचार की हकीकत जनता और प्रशासन के सामने स्वतः स्पष्ट हो जाएगी।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और अन्य विधिक प्रावधानों का उल्लेख

अम्बुज कुमार राय ने अपने ई-मेल बयान में कई कानूनी धाराओं का उल्लेख किया है, जिनके जरिए वे पुलिस और प्रशासन की विधिक जिम्मेदारियों की ओर संकेत करते हैं-

1.     सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, धारा 4इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से किए गए संचार/अभिकथन को वैध मान्यता देने से संबंधित।

2.     आईटी अधिनियम, धारा 44(क)ऐसी इलेक्ट्रॉनिक सूचना/रिपोर्ट को दर्ज व अभिलेखित करने की जिम्मेदारी पर बल।

3.     भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023, धारा 61आपराधिक षड़यंत्र रचना से संबंधित प्रावधान।

4.     BNS 2023, धारा 225लोकसेवक द्वारा अपराधी को बचाने के उद्देश्य से किए गए कार्यों पर दंडात्मक प्रावधान।

5.     भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988, धारा 13(1)(d)लोकसेवक के द्वारा भ्रष्ट आचरण व अनुचित लाभ पहुंचाने से जुड़ी धारा।

6.     BNS 2023 की धारा 2(11)लोकसेवक की परिभाषा।

7.     BNS 2023 की धारा 2(28)सद्भावना पूर्वक (Good faith) आचरण की परिभाषा।

इन धाराओं का हवाला देकर राय यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि-

  • ई-मेल के माध्यम से भेजा गया उनका बयान विधिसम्मत है,
  • इसे अभिलेखित करना और विवेचना का हिस्सा बनाना पुलिस की संवैधानिक व वैधानिक ज़िम्मेदारी है,
  • और यदि यह बयान गायब हुआ या नजरअंदाज किया गया, तो यह स्वयं पुलिस व्यवस्था के कदाचार, पक्षपात और भ्रष्ट व्यवहार का संकेत होगा।

पूर्व की विवेचना का संदर्भ: 4% ईमानदारी, 96% भ्रष्टाचार

अम्बुज राय ने अपने बयान में एक अन्य मामले एफआईआर नंबर 0189/2024 का भी उल्लेख किया है। उनका आरोप है कि-

  • उस मामले में जाँच अधिकारी ने लगभग 4% कर्तव्यनिष्ठ विवेचना की,
  • जबकि 96% हिस्से में भ्रष्टाचारयुक्त, पक्षपातपूर्ण विवेचना रही,
  • यहां तक कि CO/SP को भेजे गए लगभग पाँच पत्रों को भी रिकॉर्ड से गायब कर दिया गया।

इसके आधार पर वे आशंका जताते हैं कि-

यदि इस बार भी मेरा बयान रिकॉर्ड से गायब कर दिया गया, तो यह साफ हो जाएगा कि पुलिस तंत्र काले कोट के प्रभाव में आकर पक्षपातपूर्ण कदाचार कर रहा है।”

सुरक्षा की चिंता और विधिसम्मत समन की माँग

राय ने यह आशंका भी व्यक्त की है कि-

  • प्रकरण में एक वकील पक्ष सीधे तौर पर शामिल है,
  • और कई बार पुलिस-वकील टकराव या ‘गैंगवार’ संबंधी खबरें भी मीडिया में आती रही हैं,
  • ऐसे में यदि उन्हें बिना उचित सुरक्षा और विधिसम्मत प्रक्रिया के अचानक थाने बुलाया गया, तो उनकी जान को खतरा हो सकता है

इसीलिए वे विवेचना अधिकारी से निवेदन करते हैं कि-

  • यदि उनकी सदेह (शारीरिक) उपस्थिति अनिवार्य हो,
  • तो उन्हें विधि सम्मत तरीके से समन/नोटिस भेजा जाए,
  • वे स्वयं उपस्थित होकर अपना बयान देने को तैयार हैं,
  • और आवश्यकता पड़ने पर शपथपत्र भी न्यायालय/थाने में प्रस्तुत करेंगे।

प्रशासन और पुलिस की प्रतिक्रिया?

समाचार लिखे जाने तक, थाना मुहम्मदाबाद, सम्बंधित विवेचना अधिकारी या मनरेगा/राजस्व प्रशासन की ओर से

  • अम्बुज कुमार राय के आरोपों पर
  • और ई-मेल से भेजे गए सशपथ बयान की वैधता/स्वीकार्यता पर

कोई आधिकारिक लिखित प्रतिक्रिया उपलब्ध नहीं हो सकी है।

पत्रकारिता के मानकों के अनुरूप, इस रिपोर्ट में दर्ज तमाम आरोप अम्बुज कुमार राय के सशपथ पूर्वक ई-मेल बयान पर आधारित हैं। संबंधित पक्षांना (शिकायतकर्ता अधिवक्ता, ग्राम प्रधान प्रतिनिधि, जिला प्रशासन, पुलिस विभाग) को अपना पक्ष रखने का पूरा अधिकार है।

व्यापक संदर्भ: आरटीआई कार्यकर्ता, स्थानीय सत्ता संरचनाएं और मनरेगा

यह प्रकरण केवल एक गांव, एक आरटीआई कार्यकर्ता और एक एफआईआर तक सीमित नहीं, बल्कि कई बड़े सवाल भी उठाता है-

  • क्या मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजना वकील–ठेकेदार–प्रधान गठजोड़ के लिए आसान कमाई का माध्यम बनती जा रही है?
  • क्या आरटीआई कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले ग्रामीण, झूठे मुकदमों और दबाव की राजनीति के शिकार हो रहे हैं?
  • क्या पुलिस विवेचना में इलेक्ट्रॉनिक अभिकथन, सीसीटीवी, डिजिटल साक्ष्य और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को पर्याप्त महत्व दिया जा रहा है?

अम्बुज कुमार राय का सशपथ बयान इन प्रश्नों को और तीखा कर देता है। अब निगाहें इस बात पर हैं कि-

  • विवेचना अधिकारी उनके ई-मेल बयान को रिकॉर्ड पर लेकर किस तरह आगे बढ़ते हैं,
  • और प्रशासन मनरेगा शिकायतों की जाँच में पारदर्शिता व जवाबदेही का क्या मॉडल प्रस्तुत करता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

न्यूज डेस्क जगाना हमारा लक्ष्य है, जागना आपका कर्तव्य